शनिवार, 25 जून 2016

समय ( ताटंक छंद )



कभी दिखाता सत्य अहिंसा, कभी घाव भी देता है.
कभी बाँधता प्रेम पाश में, कभी प्राण हर लेता है,
रात दिवस जो चलती रहती, उन साँसों का माली है,
कुदरत के हैं खेल निराले, समय बड़ा बलशाली है ||

कभी बैर बन रहता दिल में, कभी मित्र सा होता है,
याद बने तो फिर आँखों में , सदा चित्र सा होता है,
यही रंक कर देता मन को , यही प्रीति भर देता है,
बदल गया तो मिली हार को, समय जीत कर देता है ||

होता है जब भी उजियारा,.....तम सारा हर लेता है |
समय सूर्य बनकर जीवन को, अपनी आभा देता है |
आस रहे तो इस जीवन में,पुष्प नए खिल जाते हैं |
अँधियारे के छटते कितने , रस्ते हमतुम पाते हैं ||

आस दीप जिस दिल में रोशन ,वह जीवन मुस्काएगा |
बुझा यदि वह दीपक समझो, तम फिरसे घिर आयेगा |
दीप शिखा को रखना उन्नत,......ऊँची हर सच्चाई हो |
पूछो जिसका दीप बुझा हो,.........रात अँधेरी पायी हो ||


~ अशोक कुमार रक्ताले.